प्रदोष व्रत जिसे प्रदोषम के नाम से भी जाना जाता है, सबसे प्रसिद्ध हिंदू व्रतों में से एक है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
लोग इस व्रत का पालन सुख, आध्यात्मिकता और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करते हैं। प्रदोष काल का समय आमतौर पर ‘संध्याकाल’ या सांझ के समय होता है।
महीना | दिनांक | दिन | व्रत का नाम | तिथि का समय |
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Utsav Joshi
Rajkumar Birla
ShrutiA
हिंदी में, प्रदोष व्रत का अर्थ है, वह जो रात के शुरूआती चरण में मनाया जाता है। भक्त इस व्रत का पालन भगवान शिव और देवी पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए करते हैं।
त्रयोदशी या किसी हिंदू महीने के तेरहवें दिन को प्रदोष व्रत तिथि माना जाता है। किसी भी हिंदू महीने में प्रदोष व्रत के दो दिन या दो तिथियां पड़ती हैं। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में।
प्रदोष व्रत को एक अत्यधिक शुभ और महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप प्रदोष काल के दौरान भगवान शिव की पूजा करते हैं, तो आप सभी तरह के पापों से मुक्ति पा सकते हैं और आपको मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है।
प्रदोष व्रत का अधिकतम लाभ पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने के लिए सही समय अवश्य देखना चाहिए।
अलग-अलग दिनों में प्रदोष व्रत करने के फायदे
हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत पूजा करने का सबसे अच्छा समय
हिंदू परंपराओं के अनुसार त्रयोदशी तिथि में सूर्यास्त के बाद प्रदोष व्रत पूजा करने का सबसे अच्छा समय माना जाता है।